श्री नृ:सिंह रमल ज्योतिष शोध संस्थान, गोवर्धन, मथुरा

नव ग्रह वाटिका के सम्बन्ध में

!! श्री गुरू कृपा !! !! श्री गिरिराज कृपा !! !! श्री नृःसिंह कृपा !!

कस्तूरी कुण्डलनि बसै, मृग ढूड़ें वन माहिं।
ऐसे घटघट राम हैं, दुनिया देखें नाहिं।

आज समस्त प्राणी मात्र की यही स्थिति है। प्राणी सदैव जिज्ञासु रहा है और अपनी जिज्ञासा को पूर्ण करने के लिये सदैव प्रयत्नशील रहा है।

‘‘श्री नृःसिंह नवग्रह वाटिका’’ की स्थापना जिज्ञासावश जनकल्याणार्थ/ज्योतिष शोधशाला स्वरुप की गयी है। जो दिनप्रतिदिन मेरे लिये रहस्यमयी होती जा रही थी। इस संदर्भ में अपने अल्प ज्ञान के द्वारा इस मंदिर के आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दर्शन मानसिक रुप से कराने का प्रयास कर रहा हूँ। आइये इस मंदिर की मानसिक प्रदक्षिणा करते हैं।

सूर्य देव

श्री सूर्यदेव जिन्हें नवग्रह मण्डल में पिता एवं नेत्रों का स्थान प्राप्त हैं। उनकी पूजा करने से पहले उनके गर्भ गृह के दर्शन करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार सूर्य ग्रह का ताम्र रंग है, इसीलिये उनके श्री विग्रह को ताम्र रंग के गर्भ ग्रह में विराजनमान किया गया है। आईये उनका ध्यान करते हैं। 

श्री सूर्य ग्रह ध्यानः-

ॐ पद्मासनः पद्मकरो द्विबाहुः पद्द्युतिः सप्तुरंगवाहनः।
दिवाकरो लोकगुरुः किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देवः।।

हे सूर्यदेव! आप रक्तकमल के आसन पर विराजमान रहते हैं, आपके दो हाथ हैं तथा आप दोनों हाथों में रक्तकमल लिए रहते हैं। रक्तकमल के समान आपकी आभा है। आपके वाहन-रथ में सात घोड़े हैं, आप दिन में प्रकाश फैलाने वाले हैं। लोकों के गुरु हैं तथा मुकुट धारण किए हुए हैं, आप प्रसन्न होकर मुझ पर अनुग्रह करें।

 

चन्द्र देव

    श्री चन्द्रदेव जिन्हें नवग्रह मण्डल में माता एवं मन का स्थान प्राप्त हैं। उनकी पूजा करने से पहले उनके गर्भ ग्रह के दर्शन करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार चन्द्र ग्रह का सफेद रंग है, इसीलिये उनके श्री विग्रह को सफेद रंग के गर्भ ग्रह में विराजित किया गया है। आईये उनका ध्यान करते हैं। 

श्री चन्द्र ग्रह ध्यानः-

ॐ श्वेताम्बरः श्वेतविभूषणश्च श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहुः।
चन्द्रोऽमृतात्मा वरदः किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देवः।।

हे चन्द्रदेव! आप श्वेत वस्त्र तथा श्वेत आभूषण धारण करने वाले हैं। आपके शरीर की कांति श्वेत है। आप दंड धारण करते हैं, आपके दो हाथ हैं, आप अमृतात्मा हैं, वरदान देने वाले हैं तथा मुकुट धारण करते हैं, आप मुझे कल्याण प्रदान करें।

मंगल देव

 

श्री मंगलदेव जिन्हें नवग्रह मण्डल में हमारे शरीर के अन्दर रक्त संवार के रूप में  स्थान प्राप्त हैं। उनकी पूजा करने से पहले उनके गर्भ ग्रह के दर्शन करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार मंगल ग्रह का लाल रंग है, इसीलिये उनके श्री विग्रह को लाल रंग के गर्भ ग्रह में विराजित किया गया है। आईये उनका ध्यान करते है।

श्री मंगल ग्रह ध्यानः

रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्भुजो मेषगतो गदाभृत्।
धरासुतः शक्तिधरश्च शूली सदायमस्मद्वरदः प्रसन्नः।।

जो रक्त वस्त्र धारण करने वाले, रक्त विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, मेष वाहन, गदा धारण करने वाले, पृथ्घ्वी के पुत्र, शक्ति तथा शूल धारण करने वाले हैं, वे मंगल मेरे लिए सदां वरदायी और शांत हों।

 

 

बुद्ध देव

   श्री बुधदेव जिन्हें नवग्रह मण्डल में हमारे शरीर के अन्दर बुद्धि, विवेक, व्यापार और हृदय के रूप में  स्थान प्राप्त हैं। उनकी पूजा करने से पहले उनके गर्भ ग्रह के दर्शन करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार बुध ग्रह का हरा रंग है, इसीलिये उनके श्री विग्रह को हरे रंग के गर्भ ग्रह में विराजित किया गया है। आईये उनका ध्यान करते हैं। 

श्री बुध ग्रह ध्यानः-

ॐ पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी चतुर्भुजो दण्डधरश्चहारी।
चर्मासिधृक् सोमसुतो गदाभृत् सिंहाधिरुढो वरदो बुधश्च।।

जो पीत वस्त्र धारण करने वाले, पीत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, दंड धारण करने वाले, माला धारण करने वाले, ढाल तथा तलवार धारण करने वाले और सिंहासन पर विराजमान रहने वाले हैं, वे चंद्रमा के पुत्र बुध मेरे लिए सदां वरदायी हों।

 

बृहस्पति देव

श्री वृहस्पति देव जिन्हें नवग्रह मण्डल में हमारे शरीर के अन्दर बुद्धि, आध्यात्मिक ज्ञान के रूप में  स्थान प्राप्त हैं। उनकी पूजा करने से पहले उनके गर्भ ग्रह के दर्शन करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार वृहस्पति ग्रह का पीला रंग है, इसीलिये उनके श्री विग्रह को पीले रंग के गर्भ ग्रह में विराजित किया गया है। आईये उनका ध्यान करते हैं। 

श्री वृहस्पति ग्रह ध्यानः-

ॐ पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी चतुर्भुजो देवगुरुः प्रशान्तः।
तथाऽक्षसूत्रं च कमण्डलुश्च दण्डश्च विभ्रद्वरदोऽस्तु मह्यम्।।

जो पीला वस्त्र धारण करने वाले, पीत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, अत्यंत शांत स्वभाव वाले हैं तथा जो दंड, कमण्डलु एवं अक्षमाला धारण करते हैं, वे देवगुरु बृहस्पति मेरे लिए वर प्रदान करने वाले हों।

शुक्र देव

श्री शुक्रदेव जिन्हें नवग्रह मण्डल में हमारे शरीर के अन्दर सौंन्दर्य, काम, कला, वासना के रूप में  स्थान प्राप्त हैं। उनकी पूजा करने से पहले उनके गर्भ ग्रह के दर्शन करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार शुक्र ग्रह का सफेद रंग है, इसीलिये उनके श्री विग्रह को सफेद रंग के गर्भ ग्रह में विराजित किया गया है। आईये उनका ध्यान करते हैं। 

श्री शुक्र ग्रह ध्यानः-

ॐ श्वेताम्बरः श्वेतवपुः किरीटी चतुर्भुजो दैत्यगुरुः प्रशान्तः।
तथाऽक्षसूत्रं च कमण्डलुश्च बिभ्रद्वरदोऽस्तु मह्यम्।।

जो श्वेत वस्त्र धारण करने वाले, श्वेत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, शांत स्वरूप, अक्षसूत्र तथा जयमुद्रा धारण करने वाले हैं, वे दैत्यगुरु शुक्राचार्य मेरे लिए वरदायी हों।

 

शनि देव

   श्री शनिदेव जिन्हें नवग्रह मण्डल में हमारे शरीर के अन्दर उदर, हड्डीयों, और मोक्ष के रूप में  स्थान प्राप्त हैं। उनकी पूजा करने से पहले उनके गर्भ ग्रह के दर्शन करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार शनि ग्रह का नीला रंग है,  इसीलिये उनके श्री विग्रह को नीले रंग के गर्भ ग्रह में विराजित किया गया है। आईये उनका ध्यान करते हैं। 

श्री शनि ग्रह ध्यानः- 

ॐ नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृघ्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रशान्तः सदाऽस्तु मह्यम् वरदोऽल्पगामी।।

जो नीली आभा वाले, शूल धारण करने वाले, मुकुट धारण करने वाले, गृध्र पर विराजमान, रक्षा करने वाले, धनुष को धारण करने वाले, चार भुजा वाले, शांत स्वभाव एवं मंद गति वाले हैं, वे सूर्यपुत्र शनि मेरे लिए वर देने वाले हों।

राहु देव

श्री राहुदेव जिन्हें नवग्रह मण्डल में हमारे शरीर के अन्दर गुप्त शक्तियों, कठिन परिश्रम और उदर के रूप में  स्थान प्राप्त हैं। उनकी पूजा करने से पहले उनके गर्भ ग्रह के दर्शन करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार राहु ग्रह का काला रंग है, इसीलिये उनके श्री विग्रह को काले रंग के गर्भ ग्रह में विराजित किया गया है। आईये उनका ध्यान करते हैं। 

श्री राहु ग्रह ध्यानः-

ॐ नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी करालवक्त्रः करवाल शूली।
चतुर्भुजश्चक्रधरश्च राहु सिंहाधिरुढो वरदोऽस्तु मह्यम्।।

नीला वस्त्र धारण करने वाले, नीले विग्रह वाले, मुकुटधारी, विकराल मुख वाले, हाथ में ढाल-तलवार तथा शूल धारण करने वाले एवं सिंहासन पर विराजमान राहु मेरे लिए सदां वरदायी हों।

 

 

केतु देव

   श्री केतु देव जिन्हें नवग्रह मण्डल में हमारे शरीर के अन्दर गुप्त शक्तियों, कठिन परिश्रम और उदर  के रूप में  स्थान प्राप्त हैं। उनकी पूजा करने से पहले उनके गर्भ ग्रह के दर्शन करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार केतु ग्रह का काला रंग है, इसीलिये उनके श्री विग्रह को काले रंग के गर्भ ग्रह में विराजित किया गया है। आईये उनका ध्यान करते हैं। 

श्री केतु ग्रह ध्यानः-

ॐ धूम्रो द्विबाहुर्वरदो गदाधरो गृध्रासनस्थो विकृताननश्च।
किरीट केयूर विभूषितो यः सदाऽस्तु मे केतुगणः प्रशान्तः।।

धुएं के समान आभा वाले, दो हाथ वाले, गदा धारण करने वाले, गृध्र के आसन पर स्थित रहने वाले, भयंकर मुख वाले, मुकुट एवं बाजूबन्द से सुषोभित अंगों वाले तथा शांत स्वभाव वाले केतुगण मेरे लिए सदां वर प्रदान करने वाले हों।

श्री गणेश जी, नवग्रहों की पूजा आदि दर्शन करने के बाद

अब आप इस मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह जिसमें ग्राम देवता श्री गिरिराज महाराज के सूक्ष्म श्री विग्रह जो दांये स्थापित हैं वह हमें भूमि पूजन के समय प्राप्त हुये थे उन्हें विराजित किया गया है। उनके वांयी ओर स्वयं सालिग्राम स्वरूप प्राकृतिक श्री नृःसिंह रूप में हैं। यह भी रहस्मयी रूप में प्राप्त हुये हैं जिन्हें विराजित किया गया है। इन्हीं के पास जगतगुरू श्री शिवरूप भी विराजित है।

अब आप इस मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह जिसमें ग्राम देवता श्री गिरिराज महाराज के सूक्ष्म श्री विग्रह जो दांये स्थापित हैं वह हमें भूमि पूजन के समय प्राप्त हुये थे उन्हें विराजित किया गया है। उनके वांयी ओर स्वयं सालिग्राम स्वरूप प्राकृतिक श्री नृःसिंह रूप में हैं। यह भी रहस्मयी रूप में प्राप्त हुये हैं जिन्हें विराजित किया गया है। इन्हीं के पास जगतगुरू श्री शिवरूप भी विराजित है।

 श्री गिरिराज महाराज और श्री नृःसिंह भगवान के श्री विग्रह के नीचे चारों वेदों को स्थापित किया गया है। जिससे इनमें और दिव्यता आ सकें।

  महर्षि श्री परशुराम भगवान

इसके साथ ही इस मंदिर में प्रधान देवता स्वरूप श्री भृगुकुल शिरोमणि महर्षि श्री परशुराम भगवान की स्थापना इस उद्देश्य से की गयी है कि ये ही एक ऐसे अवतार हैं जो सिर्फ वाटिका में निवास करते है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भगवान परशुराम को छोड़कर शेष सभी अवतार किसी न किसी निमित्त अर्थात् विषेश प्रयोजन के लिये ही हुए, वे कार्य पूर्ण हो जाने पर स्वर्गधाम को गमन कर गए, जबकि भगवान परशुराम का अवतार निमित्त कार्य के अतिरिक्त नित्य एवं सतत कार्य के प्रयोजन की पूर्ति भी करता है। वह चिरंजीवी हैं तथा ऋषियों, मुनियों एवं महापुरुषों के माध्यम से लोक कल्याणार्थ सतत् कार्यरत हैं। पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम आज भी महेन्द्र पर्वत पर निवास करते हैं। लोक कल्याणार्थ अदृश्य रूप में वह आज भी सम्पूर्ण समाज का मार्गदर्शन कर रहे हैं। जो मुझे पूर्ण प्रसन्न होते हुये दृष्टिगोचर होते हैं। 

श्री लक्ष्मी नृःसिंह

   इसके बाद आप मेरे आराध्य श्री नृःसिंह भगवान के जिस दिव्य ‘‘श्री लक्ष्मी नृःसिंह’’ स्वरूप के दर्शनों का लाभ प्राप्त करेगें। 

इसके साथ ही वर्तमान समय में पृथ्वी पर स्थापित होने वाला यह प्रथम ‘‘श्री नरसिंह ऋण मुक्ति यंत्रराज’’ है (जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परिकल्पना समाहित है।)

यह मेरे आराध्य की नृःसिंह भगवान की असीम कृपा का परिणाम ही है इसका वर्णन करने के लिये मेरे पास न शब्द हैं और न ही लिखने की हिम्मत है। इस स्वरूप में स्वयं मेरे प्रभू ने आकर मेरी अभिलाषा साक्षात् दर्शन रुप में पूर्ण कर दी हैं। ऐसा मेरे को अनुभूत होता है। यह रहस्य मेरे लिये जीवनभर बना रहेगा।

इसके साथ ही इस मंदिर के परिक्रमा मार्ग को यज्ञ/वेदी की तीन मेखला सफेद, लाल एवं काले रंगों से ग्रंथित कर हवन कुण्ड का स्वरुप दिया गया है क्योंकि प्रत्येक प्राणी हवनादि कर्म नहीं कर सकते ? अतः इस मंदिर में की गयी पूजा से ही आपको हवन आदि कर्म का फल प्राप्त हो सके। ऐसा प्रयास किया गया है।

सम्पूर्ण विश्व में प्रथम बार स्थापित श्री नृःसिंह शक्ति कुण्ड

इन दिव्य दर्शनों का आनन्द प्राप्त करने के पश्चात् आप अपने वांयी ओर मेरे लिये इस संसार के अद्भुत चमत्कार साक्षत् श्री नृःसिंह भगवान की कृपा (अथवा यह भी कह सकते हैं उनकी विशेष इच्छा) से ही सम्पूर्ण विश्व में प्रथम बार स्थापित श्री नृःसिंह शक्ति कुण्ड के दर्शन लाभ प्राप्त करने के लिए………..

      आपको सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के प्रतीक स्वरुपों से अवगत होते हुए जाना पड़ेगा। इस मार्ग में प्रवेश करने से पूर्व ही सर्व प्रथम आपको दृढ़ विश्वास, श्रद्धा, भक्ति और धैर्य की प्रतीक चार सीढ़ियों पर पैर रखकर प्रवेश करना पड़ेगा। तदुपरान्त सात दिवसों के सूर्य (रवि), चन्द्र (सोम), मंगल, बुध, गुरू (बृहस्पति), शुक्र व शनि नाम की प्रतीक सात सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। आगे मोड़ से चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ एवं फाल्गुन नाम की प्रतीक बारह सीढ़ियाँ बनी हुई हैं।

अखण्ड श्री गिरिराज ज्योतिः-

इसके साथ ही आपको दाहिनी ओर पूर्व दिशा में विराजमान श्री गिरिराज पर्वत जी के आगे ‘‘अखण्ड श्री गिरिराज ज्योति’’ (श्री गिरिराज ज्योति पत्रिका का प्रतीकात्मक एवं 30.11.2007 से अखण्ड रूप से प्रज्ज्वलित है। जो इस मंदिर में आपकी पूजा की साक्षी है। जिसको शारदा तिलक, रुद्रयामल, श्री भैरव तंत्र के आधार पर जन कल्याणर्थ स्थापित किया गया। इस अखण्ड ज्योति को नवग्रह को समर्पित तंत्रानुसार नव कमलदल में स्थापित किया गया है। इसके साथ ही मैंने जैसा अनुभव किया है भौतिक जगत में कि अधिकतर परेशानियां हमारे ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं के द्वारा ही उत्पन्न होती हैं, इसीलिये शास्त्रों के अनुसार आपके शत्रुओं का इसके दर्शन मात्र से शमन हो जाये सरसों के तेल के साथ-साथ विशेष कार्य सिद्धि के लिए 54 धागे की वत्ती का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही जनकल्याणार्थ इसमें कुछ गुप्त प्रयोग भी रहस्यमय हैं। आईये अखण्ड श्री गिरिराज ज्योति की प्रार्थना अपने शत्रुओं के शमन और दैनिक जीवन में संकट निवारण के लिये करते हैं………..

शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धन संपदा, षत्रु बुद्धि विनाषाय च दीपज्योतिः नमोऽस्तुते।
ऊँ अग्नि ज्योतिः परंब्रह्म दीपो ज्योतिजनार्दनः, दीपो हरतु मे पापं, दीप ज्योतिः नमोस्तुते।।

हे दीपज्योति ! तुम हमारा शुभ करने वाली, कल्याण करने वाली, हमें आरोग्य और धन-संपदा देने वाली, शत्रु बुद्धि का विनाश करने वाली है।

दीपज्योति ! तुझे नमस्कार ! हे दीपज्योति ! तुम परमब्रह्म है, तुम जनार्दन है, तुम हमारे पापों का नाश करती है, तुझे नमस्कार !

श्री नृःसिंह शक्ति कुण्ड वृताकार है जो लघुकाय अवश्य है, लेकिन दिव्य है। इस कुण्ड में अतिशीघ्र ही ताम्र पत्र की प्लेट लगायी जावेंगी, जिससे यह जल अमृतमयी हो सके। कुण्ड के मध्य में विशाल नौ कोण (नवग्रह प्रतीक) श्री नृःसिंह स्तम्भ है। इस श्री नृःसिंह स्तम्भ के ऊपर नौ दक्षिणावर्ती शंख स्थापित किये गये हैं। इन शंखों के ऊपर पिरामिड की स्थापना इस उद्देश्य से की गयी है क्यांकि हमारी पृथ्वी पिरामिड पर स्थित है ? इस पिरामिड के ऊपर प्रिज्म स्थापित किया गया है। इस पिरामिड के नीचे स्थित श्री नृःसिंह स्तम्भ ही भक्त वत्सल श्री नृःसिंह भगवान् का साक्षात् स्वरूप है।

इसी श्री नृःसिंह स्तम्भ में नीचे धरातल पर पूर्व में श्रीसूर्य यंत्र, दक्षिण में श्रीनवग्रह यंत्र, पच्छिम में श्री उग्रनृःसिंह यंत्र तथा उŸार में श्री लक्ष्मीनृःसिंह यंत्र प्राण प्रतिष्ठित कर स्थापित किये गये हैं। इस स्तम्भ से प्रतिपल जल टपकता रहता है। ऐसा मेरा विश्वास है कि समस्त सृष्टि के पालनहार और भक्त वत्सल मेरे प्रभु श्री नृःसिंह भगवान के नेत्रों और श्री चरणों के सम्मुख होकर टपकते जल के साथ इस ब्रह्माण्ड में भ्रमण करती ज्ञात/अज्ञात शक्तियां इस कुण्ड में समाहित हो जावेगी और जिनके कारण से ये जल सर्व संकट निवारण करने में सक्षम होगा। ऐसा मेरा ही नहीं अनेकों विद्वानों का विश्वास है। वृताकार कुण्ड के तट पर वृताकार घेर के रूप में अश्वनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती, इन सŸाईस नक्षत्रों के प्रतीक रूप में प्रत्येक ग्रह के रंग के अनुसार सŸाईस पिरामिड स्थापित किये गये हैं। जिनके द्वारा इस जल में हमारी प्राचीन सूर्य/चन्द्र किरण (रंग) चिकित्सा के द्वारा इसमें रोग नष्ट करने की क्षमता के साथ-साथ नवग्रहों से पीड़ित रोगों से भी शान्ति लाभ हो सके, का प्रयास किया गया है।

मनोती स्थल :-

इसी कुण्ड में पश्चिम दिशा में स्वयं प्रकट श्री नृःसिंह रूप श्री गिरिराज शिला को मनोती स्थल के स्वरूप में स्थापित किया गया है। जहॉ संकटग्रस्त भक्त अपनी मनोति मॉगते हैं तथा पूर्ण होने पर पुनः आकर अपनी मनोती की पूजा आदि कर्म करते हैं। जिससे ऐसा आभस होता है कि स्वयं श्री गिरिराज महाराज श्री नृ‘सिंह स्वरूप में मनोती स्वीकार करते हैं। 

             तदुपरान्त आगे पुनः अखण्ड ज्योति के दर्शन करते हुए कुण्ड तल से ऊपर जाने के लिए प्रथक मार्ग है जो बारह राशियों मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन के प्रतीक रूप में बारह सीढ़ियाँ हैं। पुनः मोड़ के बाद पाँच तत्वों पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश तत्व (रमल ज्योतिष) की प्रतीक पाँच सीढ़ियाँ हैं जो नवग्रह वाटिका पर पहुँचाती हैं। समस्त प्राणी मात्र का जन्म इन्हीं के अन्तर्गत होता है इनसे अन्यथा नहीं। जो व्यक्ति भक्ति एवं श्रद्धा के साथ इस कुण्ड की प्रदक्षिणा करता है। उसके संकट अवश्य .ही दूर हो जावेगें और मनोकामनओं की पूर्ति होगी। रास्ते में वांये हाथ पर इस संस्थान के संरक्षक पं0 भॅवर सिंह शर्मा ‘‘जैमन’’ (स्वतंत्रता सैनानी/हस्त रेखा विशेषज्ञ) यज्ञशाला एवं स्वतंत्रता संग्राम सैनानी स्मारक (मथुरा जिले के समस्त स्वतंत्रता संग्राम सैनानीयों को समर्पित) स्थापित किया गया है। जहाँ समय-समय पर यज्ञादि होते ही रहते हैं।

सम्पूर्ण ज्योतिषीय-वदोक्त नवग्रह वाटिका :-

‘यस्यां वृक्षावनस्पत्या ध्रुवास्तिष्ठन्ति विश्वहा’      ।।अथर्ववेद।। 

इस नवग्रह वाटिका की स्थापना श्री अथर्वेद की इसी सूक्ति के आधार पर वेदी स्वरुप में की गयी है। इस वाटिका के प्रत्येक वृक्ष को ज्योतिष में वर्णित सर्वार्ध-सिद्धि योगों के अन्तर्गत की गयी है। इस वाटिका के मध्य में सूर्य का प्रतीक मंदार वृक्ष स्थापित है और इसके चारों तरफ चन्द्रमा का प्रतीक पलाशमंगल का खैरबुध का अपामार्गगुरू का पारसपीपलशुक्र का गूलरशनि का शमीराहु का चन्दन और केतु का अश्वगंधा वृक्ष स्थापित किये गये हैं। ऐसा प्रतीत ही नहीं अपितु विश्वास होता है कि ग्रहों से पीड़ित व्यक्ति यहाँ आकर अवश्य ही शांति प्राप्त करेंगे और किंचित ग्रह प्रसन्नार्थ क्रिया करने पर ही वे विरोधी क्रूर ग्रह प्रसन्न हो लाभकारी दृष्टि अपनायेंगे। मुझे इन वृक्षों में दिव्यता का आभास इसी से होता है कि अनेकों कष्टों से पीड़ित व्यक्तियों को अल्प समय में ही लाभ होते हुए देखा गया है। इस नवग्रह वाटिका की स्थापना करते समय इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि वृक्षों की दूरी अधिक न हो जाये क्योंकि ? मेरा ऐसा विश्वास है कि यदि किसी महापुरुष का हाथ यदि हमारे सिर के ऊपर रखा होगा तो हमारा संकट स्वतः ही नष्ट हो जावेगा। इसी कारण जिस समय ये वृक्ष अपनी दीर्घता को प्राप्त होगें तो आपस में समाहित हो जावेगें और इनके नीचे से प्रदक्षिणा करने वाले प्रत्येक भक्त को अपना आर्शीवाद प्रदान करेंगे जिससे उसका संकट दूर हो जावेगा। आईये इनकी पूजा करतें हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे नक्षत्र मण्डल को नौ ग्रहों में समाहित किया गया है।  

ऊँ ब्रह्मा मुरारि स्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशिः भूमिसुतो बुधश्च।

गुरूश्च शुक्रः शनि राहु केतवः, सर्वे ग्रहाः शांति करा भवन्तुः।।

 सर्व प्रथम श्री गिरिराज महाराज का स्मरण करने के पश्चात्य श्री सूर्य देव को नमन करते हैं। तदोपरान्त श्री चन्द्र देव, श्री मंगल देव, श्री राहु देव, श्री वृहस्पति देव, श्री शनि देव, श्री बुध देव, श्री केतु देव, श्री शुक्र देव का स्मरण कर प्रदक्षिणा करें। 

 जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा गीता के दशवें अध्याय के 26वें श्लोक में ‘अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां’ कहकर ‘वृक्षों में पीपल वृक्ष मैं हूँ’ कहा गया है। जो साक्षात् भक्तों को आर्शीवाद प्रदान करते रहते हैं। इनका और श्री बटुक भैरव जी (जिनकी अराधना से क्रूर ग्रह शनि, राहु, केतु और मंगल की एक साथ शान्ति हो जाती है। ऐसा मेरा निजी अनुभव है। क्योंकि ग्रहों से पीड़ित प्राणी शान्ति पाठ का लाभ लेते ही रहते हैं ?) का आर्शीवाद प्राप्त करते हुये आपकी प्रदक्षिणा पूर्ण हो जावेगी।

             मेरा उद्देश्य आपको इस पत्र के माध्यम से इस दिव्य स्थल का मानसिक चिंतन कराना है। यदि आपने सहृदय से मानसिक चिंतन किया तो निश्चित ही आपको क्षणिक आनन्द की अनुभूति अवश्य ही होगी। यदि आपको आनन्द की अनुभूति होती है तो मुझे एक यज्ञ के फल के बराबर आनन्द की प्राप्ति होगी। ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। 

इसी के साथ ही ‘‘मेरी परिकल्पना’’ प्रातः स्मरणीय सद्गुरुदेव के आर्शीवाद, मेरे प्रभु श्री गिरिराज महाराज, श्रीनृःसिंह भगवान् की असीम कृपा आप सभी विद्वत्तजनों एवं सहयोगियों के सहयोग से साकार हो गयी है।

!! बोलिए श्री नृःसिंह भगवान की जय। !!           

।। यं यं चिन्तयते कामं, तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।।

(मनुष्य श्री नृःसिंह भगवान की आराधना जिन-जिन कार्यों को सोच कर करता है उन्हें अवश्य ही प्राप्त कर लेता है।)

    मेरी कामना है कि मेरे भक्तवत्सल प्रभू इस श्री नृःसिंह लक्ष्मी नृःसिंह नवग्रह वाटिका के प्रागढ़ में आने वाले सभी भक्तों पर संकटों के निवारणार्थ उन पर अपनी करूणामयी कृपा दृष्टि अवश्य प्रदान करेंगे। ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। 

जय श्रीकृष्ण।                             जय श्री नृःसिंह।

जीवन के हर संकट में

श्री नरसिंह भगवान आपकी रक्षा करें.।

श्री लक्ष्मी नृःसिंह नवग्रह वाटिका के प्राँगढ़ में (पराविज्ञान, सम्पूर्ण रमल ज्योतिषीय, वेदोक्त, पिरामिड, आयुर्वेद, प्राकृतिक रंग/शंख चिकित्सा, श्री नृःसिंह पुराण, नारद पुराण, रावण संहिता, शारदातिलक, रुद्रयामल, तंत्र, मंत्र, यंत्र, आध्यात्म, विद्वानों के ज्ञान एवं निजी अनुभवों पर शोधपरक) आश्चर्य चकित रूप से स्थापित श्री नृःसिंह शक्ति कुण्ड के जल का प्रयोग.ः-

मेरा और अन्य विद्वत्तजनों का निजी अनुभव सिद्ध प्रयोग है कि यदि इस ‘‘श्री नृःसिंह शक्ति कुण्ड’’ के जल को विश्वास एवं धैर्य के साथ प्राण-प्रतिष्ठित दक्षिणावर्ती शंख में रखकर प्रयोग किया जाये तो यह जल अधिक दिव्यता को प्राप्त होकर लाभकारी होगा।

वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित हो गया है कि पिरामिड के अंदर विलक्षण किस्म की ऊर्जा तरंगें लगातार काम करती रहती हैं, जो जड़ (निर्जीव) और चेतन (सजीव) दोनों ही प्रकार की वस्तुओं पर प्रभाव डालती हैं। वैज्ञानिकों ने पिरामिड के इस गुण को ‘पिरामिड पावर’ की संज्ञा दी है। पिरामिड चिकित्सा द्वारा विभिन्न रोगों के उपचार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण परीक्षणों से प्राप्त नतीजों के साथ-साथ सूर्य/चन्द्र किरण चिकित्सा एक बहुत पुरानी प्राकृतिक रासायनिक तत्वों वाली चिकित्सा है। सूर्य स्नान, सतरंगी किरणों के सातो रंग के गुण ही इस चिकित्सा की मुख्य विशेषताएँ हैं। सूर्य की किरणें एवं इसके सात रंगों द्वारा हमारे शरीर को लाभ देने की उत्तम एवं लाभकारी तकनीक है। सूर्य की किरणों के सातों रंग हरेक रोगों के सफल इलाज के साथ नवग्रह से पीड़ित रोगी को अति शीघ्र तंदुरस्ती प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

सूर्य किरणों में सात रंगों के गुणः- 

1. बैंंगनीः- शीतल, लाल कणों का वर्धक, क्षय रोग का नाशक है तथा विविधता का प्रतीक है।

2. गहरा नीलाः- शीतल, पित्त रोगों का नाशक, ज्वर नाशक तथा शान्ति प्रदान करने वाला है। सूर्य शरीर को निरोगिता प्रदान करता है।

3. आसमानीः- शीतल, पित्त रोगों का नाशक तथा ज्वरनाशक, आशा का प्रतीक होता है।

4. हराः- समृद्धि और बुद्धि का प्रतीक है। समशीतोष्ण, वात रोगों का नाशक और रक्त शोधक है। ताजगी, उत्साह, स्फूर्ति और शीतलता का प्रतीक होता है।

5. पीलाः- यश तथा बुद्धि का प्रतीक होता है। ऊष्ण, कफ, रोगों का नाशक, हृदय और पेट रोगों नाशक होता है। संयम, आदर्श, परोपकार का प्रतीक होता है।

6. नारंगीः- आरोग्य तथा बुद्धि का प्रतीक है। ऊष्ण, कफ रोगों का नाशक मानसिक रोगों में शक्तिवर्धक है तथा दैवी महत्वाकांक्षा का प्रतीक होता है।

7. लालः- प्रेम भावना का प्रतीक होता है। अति गर्म, कफ रोगों का नाशक, उत्तेजना देने वाला और केवल मालिश के लिए उत्तम होता है।

 

पिरामिड चिकित्साः- 

1. पिरामिड के अंदर रखे जल को पीने से सिर दर्द एवं दाँत दर्द के रोगियों को पिरामिड के अंदर बैठने पर दर्द से छुटकारा मिल जाता है। साथ ही कई प्रकार के मानसिक विकार भी दूर हो जाते हैं।

2. पिरामिड के अंदर रखे जल को पीने से घाव, छाले, खरोच आदि पिरामिड के अंदर बैठने से बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं।

3. पिरामिड के अंदर रखे जल को पीने से टान्सिल की समस्या से छुटकारा मिलता है, आँखों को धोने से उसकी ज्योति बढ़ती है, पाचन क्रिया में सुधार होता है, घुटनों पर मलने से घुटनों का दर्द दूर हो जाता है।

4. पिरामिड के अंदर किसी तरह की आवाज या संगीत बजाने पर बड़ी देर तक उसकी आवाज गूँजती रहती है। इससे वहाँ उपस्थित लोगों के शरीर पर विचित्र प्रकार के कम्पन पैदा होते हैं, जो मन और शरीर दोनों को शांति प्रदान करते हैं।

5. पिरामिड के अंदर रखे जल को पीने से अनिद्रा की बीमारी दूर होती है व शराब पीने की आदत एवं नशीले पदार्थों के सेवन की लत को भी प्रतिदिन थोड़ी-थोड़ी देर के लिए पिरामिड के अंदर बैठकर छुड़ाया जा सकता है।

 

शंख चिकित्साः-

1. जो श्री नृःसिंह भगवान को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर उन्हें अर्ध्य देता है, उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है।

2. शंख में जल भरकर ऊँ नमो नरसिंहाय का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता है।

3- दक्षिणावर्ती शंख जहां भी रहता है, वहां धन की कोई कमी नहीं रहती।

4- दक्षिणावर्ती शंख को अन्न भण्डार में रखने से अन्न, धन भण्डार में रखने से धन, वस्त्र भण्डार में रखने से वस्त्र की कभी कमी नहीं होती।

5- इसमें जल भर कर भगवान् विष्णु का अभिषेक करने से माता लक्ष्मी और भगवान् विष्णु दोनों का अनुग्रह प्राप्त होता है और व्यक्ति हर क्षेत्र में सफलता के साथ समस्त भौतिक सुख और दैवीय कृपा पाता है।

6- इसमें दूध मिश्रित जल भर श्री नृःसिंह ऋणनाशक स्तोत्र का पाठ करते हुए अभिषेक करने से समस्त ऋणों का नाश अतिशीघ्र होता है।

7. शास्त्रों के अनुसार इसके जल को पीने से मंद बुद्धि व्यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है।

8. जो बच्चे कम बोलते हैं अटकते, तुतलाते या हकलाते हैं उन्हें छः मास तक इसमें रात्रि में जल भर प्रातः पिलाने से सभी वाणी विकार दूर होते हैं। उन्हें आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा। दरअसल मूकता व हकलापन दूर करने के लिए शंख-जल एक महौषधि है।

9. शंखों में भी विषेष शंख जिसे दक्षिणावर्ती शंख कहते हैं इस शंख में दूध भरकर शालीग्राम का अभिषेक करें। फिर इस दूध को निःसंतान महिला को पिलाएं। इससे उसे शीघ्र ही संतान का सुख मिलता है।

10. इसमें रात्रि में जल भर कर प्रातः बंध्या स्त्री को स्नान व आचमन कराने से वो पुत्रवती होती है।

11. दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उसे जिसके ऊपर छिड़क दिया जाये, वह व्यक्ति तथा वस्तु पवित्र हो जाता है।

12. यदि पति-पत्नि में लगातार मन मुटाव या झगड़ा होता हो तो शयन कक्ष में इसे श्वेत वस्त्र में लपेट कर शुद्ध स्थान में रखने से दोनों के मन और घर में शांति रहती है।

13. प्रत्येक पूर्णिमा पर और जरूरत पड़ने पर कभी भी इसमें रात्रि में शुद्ध जल भरकर घर के प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त हो जाता है।

14. किसी भी प्रकार के टोने-टोटके इस शंख के आगे निश्फल हो जाते हैं।

15. प्रातःकाल इसके दर्षन कर कार्य में निकलने से सफलता मिलती है और मन शांत रहता है।

16. विधिवत सिद्ध दक्षिणावर्ती शंख को व्यापारिक संस्थान में स्थापित करने से ग्राहकों की कभी कमी नहीं होती और व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता है।

17. इसमें रात्रि में गंगाजल मिश्रित दूध भर कर सुबह व्यापारिक प्रतिष्ठान में बाहर से भीतर की ओर छिड़कते हुए जाने से धंधे को किसी भी पड़ोसी या प्रतिद्वंदी की नजर नहीं लगती, किसी भी प्रकार का तंत्र-मंत्र द्वारा किया गया व्यापार बंधन निश्फल हो जाता है।

18- इसमें श्री नृःसिंह शक्ति कुण्ड के जल को रात में भरकर प्रातः काल तथा प्रातः काल भरकर रात्रि को पीने से किसी भी ग्रह से पीड़ित बीमारी तुरन्त होती है और सभी ऐश्वर्य भी मिलते हैं।

19- इसमें रात्रि में जल भरकर प्रातः काल पीने से हृदय, श्वास, मस्तिष्क रोगों और अवसाद में अभूतपूर्व लाभ होता है।

20- जिन लोगों को बार बार भयंकर सर्दी, जुकाम, कफ होता है और इस कारण आंखे कमजोर व बाल सफेद हों यदि वे इसमें जल भरकर उसमें पांच मुखी रुद्राक्ष का एक दाना डाल कर सुबह सेवन करें तो उनकी इस समस्या का निवारण होगा।

21- छोटे बच्चो को इसमें जल भरकर तुलसी डालकर सेवन कराने से उनकी अधिकतर रोग और व्याधियां दूर भाग जाती हैं।

22- दांत निकलते समय इसमें रखा जल पिलाने से दांत बिना किसी कष्ट व आराम से निकल आते हैं।

23- जिन लोगों को गर्मी अधिक लगती है उन्हें इसमें रखे जल का सेवन करना चाहिए।

24- विभिन्न स्त्री पुरुष समस्याओं का निवारण इसमें रखे जल पीने से स्वयं ही हो जाता है।

25. तांत्रिक प्रयोगों में भी दक्षिणावर्ती शंख का उपयोग किया जाता है, तंत्र शास्त्र के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख में विधि पूर्वक जल रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती है. सकारात्मक उर्जा का प्रवाह बनता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है. इसमें शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु अथवा स्थान पर छिड़कने से तंत्र-मंत्र इत्यादि का प्रभाव समाप्त हो जाता है. भाग्य में वृद्धि होती है। किसी भी प्रकार के टोने-टोटके इस शंख उपयोग द्वारा निष्फल हो जाते हैं, दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है इसलिए यह जहां भी स्थापित होता है वहां धन संबंधी समस्याएं भी समाप्त होती हैं।

श्री नृःसिंह शक्ति कुण्ड के प्रेरणा स्त्रोतः……..

   परम श्रद्धेय वैद्यराज गंगाधर द्विवेदी जी का ये पत्र हमारे लिये प्रेरणा स्त्रोत था। हम उन्हें प्रणाम करते हैं और आशा करते हैं कि भविष्य में उनका और अन्य विद्वत्तजन भी हमारा मार्ग दर्शन करने के लिये अग्रसर होंगे।                              जय श्री कृष्ण।                                                     

पं0 कैलाश चन्द्र मिश्रा (श्री नृःसिंह उपासक/रमल विशेषज्ञ)  

संस्थापक :- श्री नक्ष्मी नृःसिंह नवग्रह वाटिका, गोवर्धन।                      

आयुर्वेद धन्वन्तरि  (मासिक समाचार पत्र)

प्रधान कार्यालय- धन्वन्तरि वाटिका, मुँगरा बादशाहपुर, जौनपुर- 222202

पत्रांक- आवश्यक               दिनांक- 10-12-2012

परम श्रद्धेय श्री स्वामी जी,

                             अभिवादन जय श्री कृष्ण।

        आप द्वारा भेजा गया पत्र अवलोकन किया और यह विचार आया कि आपके अथक प्रयास से भगवान श्री कृष्ण की धरती पर गोवर्धन तलहटी में स्थापित भगवान नृःसिंह शक्ति कुण्ड, नवग्रह वाटिका, 12 राशि, 27 नक्षत्र एवं नवग्रहों आदि का जो दर्शन स्थल बनाया गया है। यह एक दिन सम्पूर्ण विश्व के लिये दर्शनीय स्थल बनेगा, ऐसा दिवा स्वप्न आपकी कर्मठता एवं त्याग, लगन से ही सम्भव हुआ है। हम आप तथा आपके सभी सहयोगी शुभ चिंतकों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।

      आप सब द्वारा विधि-विधान से बनाया गया नृःसिंह कुण्ड के जल में प्रतिदिन 100 ग्राम सफेद फिटकरी, 100 ग्राम कल्मी शोरा प्रतिदिन शाम को दरदरा पीसकर कुण्ड के जल में डाल दें तो इस कुण्ड का पानी अमृत जल हो जायेगा।

       यह पानी बराबर बदलते रहें, जिससे पानी गंदा न हों। 

       इस अमृत जल का भविष्य में इतना महत्व बढ़ेगा कि एक दिन भारतवर्ष के अतिरिक्त विश्व के पीड़ित श्रद्धालुजन भी भारतवर्ष में स्थित भगवान नृःसिंह शक्ति कुण्ड का जल लेने हेतु आने लगेंगे।

       यह जल सर्दी, खांसी, गर्मी, सुजाक, एड्स, डायविटीज, कैसर, भयंकर गुर्दा (किडनी) रोग, आँव, दस्त, संग्रहणी, प्रदर विकार, नेत्र विकार, वातरोग, हर प्रकार से कहीं से हो रहे रक्त श्राव को रोकता है। हर प्रकार की एलर्जी के लिये यह दिव्य जल वरदान सिद्ध होगा।

विधिः-  प्रातः सूर्योदय से 5 घण्टे तक यह जल प्रभावशाली रहेगा। अतः प्रतदिन प्रातः 6 से 12 बजे दिन तक ही इस जल को एक कप लेकर धाम में स्थापित नव्रह वाटिका में पूर्व या उŸार दिशा में बैठकर भगवान नृःसिंह जी का नाम लेकर पान करें, पीने के बाद नवग्रह वाटिका में भ्रमण करें। यह क्रिया एक बार नृसिंह धाम में स्नान के बाद करनी चाहिए। कुण्ड से पानी लेकर नवग्रह वाटिका में ही स्नान करना चाहिए। एक बार धाम में यह क्रिया करके फिर अपने घर, गांव, नगर, शहर जहाँ भी चाहें किसी पोखरे-तालाब या कुआ या नदी में स्नान करके  भगवान नृःसिंह जी का ध्यान करके कुण्ड का जल पान कर लाभ उठा सकेंगे। इन्हीं शुभकामनों के साथ।      

भवदीय

(वैद्यराज गंगाधर द्विवेदी)

श्री लक्ष्मी नृःसिंह नवग्रह वाटिका, लोकमणी विहार, राधाकुण्ड परिक्रमा मार्ग, गोवधन (मथुरा)

के प्राँगढ़ में आपका हार्दिक अभिनन्दन है।

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